राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बीजेपी के संबंधों में कथित दुराव को समझने के लिए हम शुरुआत करते हैं. संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के उस हालिया बयान से जो उन्होंने नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में दी. जिस बयान के आधार पर कहा जाने लगा कि संघ प्रमुख ने केंद्र सरकार और बीजेपी पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी है.
मोहन भागवत का वो बयान था :-
जो वास्तविक सेवक होता है वह यह कभी नहीं कहता कि यह काम मैंने किया! सच्चा सेवक अहंकारी नहीं होता!
संसद में विरोधी नहीं प्रतिपक्ष कहिए!
चुनावों में मुकाबला ज़रूरी पर यह झूठ पर आधारित न हो! चुनावों में मर्यादा का पालन नहीं हुआ!
मणिपुर 1 साल से शांति की राह देख रहा है!
करीब आधे घंटे के अपने भाषण में ये चारों बातें अलग अलग जगहों पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने कही. हालांकि विगत वर्षों में सरसंघचालक इस तरह के बयान कई मौकों पर देते रहे हैं. सेवक और अहंकार, विरोधी नहीं प्रतिपक्ष, चुनावों में मर्यादा और मणिपुर में शांति ऐसे विषय हैं जिसको लेकर सवाल खड़े हुए कि क्या मोहन भागवत ने ये बयान अपने ही लोगों के लिए दिए? हालांकि अहंकार और मणिपुर पर सरसंघचालक अपने पूर्व के भाषणों में भी बोल चुके हैं, लेकिन हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने और संघ के स्वयंसेवकों और अधिकारियों का चुनावी कार्यक्रमों में उदासीन रवैए की चर्चा के बाद मोहन भागवत के बयान को लेकर बवंडर मचा.
संघ के मुखपत्र में लिखे लेख से शंका और गहराया
बीजेपी और संघ के रिश्तों में कड़वाहट की बात को पुख्ता आधार देने में मोहन भागवत के बयान के बाद संघ के मुखपत्र स्वरूप ऑर्गेनाइजर में एक स्वतंत्र लेखक के लेख का लिखा जाना जिसमें सरकार के नीति नियंता और बीजेपी की कार्यशैली पर प्रश्न खड़ा किया जाना लोगों के शंका को और पुख्ता करने लगा. रही सही कसर तब पूरी हो गई जब आरएसएस के कार्यकारिणी सदस्य और वरिष्ठ स्वयंसेवक इंद्रेश कुमार ने जयपुर में ये बयान दे दिया कि अहंकार की वजह से राम काज करने बाद भी बीजेपी 241 पर रुक गई और पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका.
मौजूदा माहौल में हवा दी जा रही
इस माहौल में अगला अध्याय जुड़ा सरसंघचालक मोहन भागवत का यूपी के गोरखपुर का दौरा से. चुकी गोरखपुर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शहर है तो जाहिर तौर पर भागवत से योगी मुलाकात की खबर ने इस विवाद को और बल दिया. हालांकि, संघ प्रमुख से संघ शिक्षा वर्ग कार्यक्रम के दौरान स्थानीय बीजेपी नेताओं का मिलना सामान्य बात है, लेकिन चूंकि माहौल पहले गर्म था इसलिए इस मुलाकात को अधिक तूल दिया गया. वैसे सरसंघचालक का प्रवास का कार्यक्रम अचानक नहीं बनता और ना ही बना, लेकिन मौजूदा माहौल में इसे भी हवा दी जा रही है.
कहां से शुरू हुआ विवाद?
यदि समग्रता में देखें तो इस विवाद की शुरुआत बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के दिए एक साक्षात्कार में निहित है. लोकसभा चुनाव के उत्तरार्ध में 18 मई को बीजेपी अध्यक्ष ने एक साक्षात्कार में कहा था ‘आरएसएस एक वैचारिक संगठन है, शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़ा कम होंगे, आरएसएस की जरूरत थी. आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम है… तो बीजेपी अपने आपको चलाती है. आज हम बड़े हो गए हैं और हम सक्षम हैं, बीजेपी खुद चलती है. यही अंतर है.’ तब लोकसभा के तीन चरणों के 163 सीटों पर चुनाव होना बाकी था. संघ और बीजेपी कार्यकर्ताओं को सोचने पर विवश होना पड़ा कि अचानक इस तरह के बयान को देने के पीछे मंशा क्या है.